अपने नए अंदाज में नया साल आया है.
कुछ पुराने गमों को छोड़कर नई खुशियां लाया है.
पुरानी दुश्मनी तोड़कर, नई दोस्ती जोड़कर.
पुराने लम्हे छोड़कर, नई नवेली दुनिया लाया है.
हर याद नई होगी, हर फरियाद नई होगी.
पुराने चेहरे खोजकर नई परियां लाया है.
जो पहले सफल नहीं रहे, वे अब कामयाब होंगे.
नई उम्मीद से बुनी हुई, नई पहेलियां लाया है.
दिल में जो भी राज हो, उनपे हमें नाज़ हो.
हैदर की काया से निकालकर नया दरिया लाया है.
शहर-शहर गली-गली एक नई गूंज होगी.
एक नए काम के आगाज़ का नया नजरिया लाया है.
अपने नए अंदाज में नया साला आया है.
कुछ पुराने गमों को छोड़कर, नई खुशियां लाया है.
- रज़ाक हैदर
शनिवार, 27 दिसंबर 2008
गुरुवार, 4 दिसंबर 2008
कहना नहीं चाहिए...
वैसे कहना नहीं चाहिए। मगर नहीं कहा जाएगा तो कहा जाएगा कि मैंने कहा नहीं और कहा जाएगा तो कहा जाएगा कि मैंने कह दिया। मगर कहें ना कहें, कहने वाले तो कहते ही रहेंगे। क्योंकि कहने वालों का तो काम ही है, कहने वालों को कुछ कहना। तो फिर कुछ कहने वालों को इन कहने वालों से क्यों घबराना। अब इन कहने वालों को कुछ न कहने के लिए कहे भी कौन। क्योंकि कहने वालों को कुछ कहने से कहने वाले कहे जाने का डर है। मगर कुछ नहीं कहे जाने से तो कहने वालों के और भी कहे जाने का डर है। इन कहने वालों के डर से कुछ कहने वाले भी नहीं कह पाते। आप ही ज़रा सोचिए 'बेचारे' कहने वाले करें भी तो क्या ???
रविवार, 23 नवंबर 2008
ज़िन्दगी का सफर

बहुत सुहाना है यह शाम का मंजर।
एक दिन खत्म हो जाएगा ये ज़िन्दगी का सफर।।
दिल ये चाहे यूं ही लिखता रहे हर पल।
कभी न डगमगाए, ये कलम ऐ 'हैदर'।।
लिखावट के ज़ेरो-ज़बर में वो ताकत आए।
खुदा की सारी कायनात भी लुट जाए हम पर।।
जो भी पढ़े इन्हें, पढ़ता ही रहे हर पल।
ना उसे दिन का पता रहे, ना रहे शाम की ख़बर।।
दीन-ए-इलाही भी इनमें शामिल हों और हो सच्चे मायने।
मंजिलें भी इनसे हासिल हों और हो हासिल मंजिले डगर।।
हर आंख का तारा बनूं, हर आंख का प्यारा बनूं।
ना इसे बुरी जुबां मिले, ना लगे बुरी नज़र।।
बहुत सुहाना है यह शाम का मंजर।
एक दिन खत्म हो जाएगा ये ज़िन्दगी का सफर।।
- रज़ाक हैदर
मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008
डा. मलकाण नहीं रहे
राजस्थानी भाषा के मूर्धन्य एवं वरिष्ठ साहित्यकार डा. अस्तअली खां मलकाण की लेखनी 2 अक्टूबर को थम गई। डीडवाना के साहित्य जगत के चमकते सितारे डा. मलकाण का हृदयघात के कारण जयपुर के दु्र्लभजी अस्पताल में निधन हो गया। वे 69 वर्ष के थे। मौन तपस्वी के नाम से चिर-परिचित आभा नगरी के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डा. मलकाण के निधन की खबर मिलते ही नगर में शोक की लहर दौड़ गई। उन्हें ईद की नमाज के बाद डीडवाना के कायमखानी कबिऱस्तान में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। डा. मलकाण के आखिरी सफर में नगर व आस-पास के सैंकड़ों लोगों ने शिरकत कर श्रद्धासुमन अर्पित किए।राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की ओर से गणेशीलाल व्यास उस्ताद पुरस्कार से सम्मानित डा. मलकाण की डेढ़ दजर्न कालजयी कृतियां छप चुकी है। कई गऱंथ पऱकाशन की कतार में है। उन्होंने राजस्थानी साहित्य में सतरंगी इन्दऱधनुष की भांति सभी विधाओं में अपनी छटा बिखेरी। उनका 'रामापीर' (महाकाव्य) साहित्य जगत में खासा चर्चित रहा था। वहीं 'धरम री जीत' (खण्ड काव्य) में भी उन्होंने अमिट छाप छोड़ी। शिक्षा विभाग में बतौर पऱाध्यापक 38 वर्ष सेवाएं देने वाले डा. मलकाण को राजस्थानी विकास मंच संस्थान जालोर से डी.लिट. की मानद उपाधि से भी नवाजा गया था। वर्तमान में वे गऱामोत्थान विद्यापीठ, डीडवाना में सेवारत थे। डा. मलकाण के निधन पर डीडवाना के साहित्य पऱेमियों ने गहरा दुःख व्यक्त किया है।
सोमवार, 1 सितंबर 2008
khushi
ऐसा लगता है कि मैं हवाओं में हूं, आज इतनी खुशी मिली है....ब्लाग की दुनिया में आकर मेरी पहली अभिव्यक्ति यही है। हिन्दी फिल्म के एक गीत की यह लाइन मुझे हमेशा उत्साह और उमंग से भर देती है। अपनी बात सहज और सरल ढंग से बुद्धिजिवी वर्ग के सामने रखने की इच्छा रखता है। शुरू से अपनी भड़ास लोगों के सामने निकालने की आदत रही है। स्कूल-कालेज के दिनों में मंच पर भाषण देने से मेरी यह इच्छा पूरी हो जाती। पर अब इस पर थोड़ी लगाम लगी है। उम्मीद है ब्लाग की दुनिया के मेरे साथी मेरी बात पर ज़रा नज़रें इनायत करेंगे। एहसासों के कारवां कुछ अल्फाजो पे सिमेटने चला हूँ। हर दर्द, हर खुशी, हर खाब को कुछ हर्फ़ में बदलने चला हूँ। न जाने कौन सी हसरत है इस मुन्तजिर हैदर को। अनकहे अनगिनत अरमानो को अपनी कलम से लिखने चला हूँ.....
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